Friday, August 21, 2009

इस बार हम साहित्‍य एवं पत्रकारिता में समान रूप से चर्चित भोलानाथ त्‍यागी की तीन कविताएं प्रकाशित कर रहे हैं।


कविता
शब्‍द, जब कविता हो जाता है
तो उसका मर्म और धर्म
सार्थक हो उठता है,
शब्‍द, जब गाली हो जाता है
तो स्‍वयं, प्रश्‍नों की सलीब पर-
टंग जाता है,
और शब्‍द, जब सलीब हो जाता है,
तो, इतिहास को उस पर टांग कर-
कीलें ठोक दी जाती हैं,
इसलिए, शब्‍द को, अगर कुछ होना ही है,
तो कविता होना चाहिए-
क्‍योंकि, कविता होना,
स्‍वयं में इतिहास होना होता है,
और इतिहास स्‍वयं अपनी-
सलीब होता है, आओ
शब्‍द को / एक बार पुन:
कविता के सांचे में ढालें
………………….

रावण का साकेत
पुरवाई, बादल और वर्षा की कल्‍पना
मरूस्‍थल की तपन में,
लगती है सुखद / कुछ ऐसे ही
ज्‍यों आजकल रामराज्‍य की बात
की जा रही हो / लेकिन आज
साकेत तक रावणराज्‍य पसर गया है,
और बेचारा राम / राजनीति की बिसात का,
एक मामूली प्‍यादा भर रह गया है,
जिस के भरोसे / शह और मात हेतु
चालें चली जाती हैं / और बेचारी जनता
पूर्ववत छली जाती है,
रामराज्‍य का राजपथ-
लोकतंत्र की पगडंडी में- कहीं,
गहरे गुम हो गया है,
और बेचारा राम, रामू बन
ए.के. सैंतालिस थामे,
जनप्रति‍निधियों की बैठक के मुख्‍यद्वार पर
पहरा दे रहा है / और अंदर बैठे ढेरों रावण
लोकतंत्र रूपी सीता का, अपहरण
संपन्‍न होने की खुशी में
मेजें थपथपा रहे हैं
…………………………
प्रश्‍न
पानी / आज स्‍वयं
पानी-पानी हो रहा है,
बात का पानी / चढ़ गया है भेंट-
उपभोक्‍ता संस्‍कृति की
बलि वेदी पर,
आंख का पानी सूख गया है
संवेदन शून्‍य है / वर्तमान सोच
समंदर खुद प्‍यासा है
चातक बनी है- आशा,
आज भी / चारों ओर
पसरा है एक रेगिस्‍तान
दिगम्‍बर देह का सच
थिरक रहा है / कला और साहित्‍य
के नाम पर,
अब लगता है
दो चुल्‍लू पानी भी नहीं बचा है,
पानी / जो शायद काम आता
कहावत के / सार्थक होने में,
पानी- स्‍वयं बन गया है- यक्ष
और कर रहा है प्रश्‍न
आपने कभी / कहीं
पानी देखा है?




……………………………………………………………………पत्रकारिता एवं साहित्‍य में समान रूप से चर्चित भोलानाथ त्‍यागी का जन्‍म 4 नवंबर, 1953 में बिजनौर के सीकरीबुजुर्ग गांव में हुआ। हिंदी एवं राजनीतिशास्‍त्र से एमए, पीएचडी, एलएलबी सात वर्ष की अल्‍पायु में ही पिता के साए से वंचित हो गए श्री त्‍यागी का लालनपालन और शिक्षादीक्षा पैजनियां (बिजनौर) में हुई। इनके नाना शिवचरण सिंह विख्‍यात स्‍वतंत्रता सेनानी एवं साहित्‍यप्रेमी थे जिसके चलते गणेश शंकर विद्यार्थी, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेंद्र कुमार जैन और बनारसी दास चतुवेर्दी जैसे लोगों का उनके घर आना जाना लगा रहा। साहित्‍यिक अभिरूचि उन्‍हें इसी परिवेश से मिली। कहानी, कविता, गीत, गजल, नाटक, लघुकथा, व्‍यंग्‍य, रिपोर्ताज आदि कई विधाओं में श्री त्‍यागी समान रूप से लिखते आ रहे हैं। उनकी कई रचनाओं का रेडियो एवं दूरदर्शन पर भी प्रसारण किया जा चुका है। उनके ‘चंदनवन की राख’ एवं ‘द्रोणाचार्य का क्‍लोन’ नामक कथा संग्रह खासी प्रशंसा बटोरी।
संपर्क:विनायकम’, इमलिया कैंपस, सिविल लाइन, बिजनौर (उत्‍तर प्रदेश)
फोन: 09456873005
ईमेल:bholanathtyagi@gmail.com

1 comment:

Unknown said...

अनिल जी आपने यह जो प्रयास शुरू किया है वह अच्‍छा है। कला, पत्रकारिता एवं साहित्‍य पर अच्‍छी चीजों का अभाव है। त्‍यागी द्वय की रचनाएं बहुत अच्‍छी लगी। आशा है कला और साहित्‍य के बाद अब पत्रकारिता पर भी आप कुछ बेहतर ही देंगे।
अजय